Panchtantra Ki Kahaniya Hindi PDF प्रत्येक देश के साहित्य में उस देश की लोक कथाओं का स्थान बहुत महत्वपूर्ण होता है। भारत का साहित्य जितना पुराना है, उतनी ही पुरानी इसकी लोक कथायें हैं। इन कथाओं में भी श्री विष्णुशर्मा द्वारा प्रणीत लोक-कथाओं का स्थान सबसे ऊँचा है। इन कथाओं का पांच भागों में संकलन किया गया है। इन पांचों भागों के संग्रह का नाम ही ‘पञ्चतन्त्र’ है ।
Panchatantra Stories Hindi आपने कभी न कभी तो ऐसी कहानियां तो सुनी ही होंगी जिनमे शिक्षा दी जाती है वह कहानियां हमें बुद्धिमान बनाने का काम करती है उन्हें पंचतंत्र की कहानिया कहा जाता है पचतंत्र एक किताब है जो मुर्ख से मुर्ख व्यक्ति को पशु पक्षियों की कहानियों के माध्यम से बुद्धिमान बना देती है। इसका इतिहास कुछ इस प्रकार है।
एक समय था जब महिलारोप्य नाम का एक नगर हुआ करता था उस नगर का राजा जिसका नाम अमरशक्ति था बहुत महान था। लेकिन उनके तीन पुत्र थे जिनका नाम बहुशक्ति, उग्रशक्ति, अनेकशक्ति था राजा उनसे बहुत परेशान था क्योंकि वह बहुत मुर्ख थे। एक दिन राजा ने परेशांन होकर और उन्हें पढाई लिखाई से विमुख देख एक सभा बुलाई और अपने मंत्रियों से कहा-
“आप लोग जानते हैं कि मेरे तीन पुत्र बुद्धि हीन हैं उनमे से कोई भी मेरे बाद राजपाठ सँभालने योग्य नहीं है। इसलिए कोई ऐसा उपाए कीजिये जिससे इनकी बुद्धि का विकास किया जा सके”।
तभी एक पंडित बोले-
“महाराज सिर्फ़ व्याकरण का अध्ययन करने में ही बारह वर्ष का समय लग जायेगा और उसे बाद शास्त्र आदि का ज्ञान दिया जाता है जिससे बुद्धि का विकास होता है”।
विद्यार्थी और शेर :- एक छोटे से नगर में चार ब्राह्मण विद्यार्थी रहते थे। वे एक-दूसरे के बहुत अच्छे मित्र भी थे। उनमें से तीन पढ़ाई-लिखाई में बहुत होशियार थे और बहुत चतुर माने जाते थे। चौथा विद्यार्थी पढ़ाई में बहुत तेज नहीं था लेकिन उसे दुनियादारी की समझ काफी थी। एक दिन एक विद्यार्थी बोला, “अगर हम लोग राजाओं के दरबारों में जाएँ तो अपनी बुद्धि के बल पर बहुत नाम और दाम कमा सकते हैं।” सारे विद्यार्थी तुरंत मान गए। वे यात्रा पर निकल पड़े।
रास्ते में उन्हें शेर की खाल और हड्डियाँ पड़ी मिलीं। पहला विद्यार्थी जोश में आकर बोला, “हमें अपने ज्ञान की परीक्षा करनी चाहिए। चलो इस शेर को फिर से जीवित करते हैं। मैं इसके कंकाल को सही तरह से व्यवस्थित कर सकता हूँ।” “मैं कंकाल में माँस और खून भर सकता हूँ,” दूसरे विद्यार्थी ने भी शेखी बघारी। “मैं फिर इसके शरीर में जान डाल सकता हूँ। यह फिर से जीवित जानवर बन जाएगा।” तीसरा विद्यार्थी बोल पड़ा।
चौथे विद्यार्थी ने कुछ नहीं कहा और तीनों की बातें सुनता रहा। इसके बाद उसने अपना सिर हिलाया और बोला, “ठीक है, तुम लोगों को जो अच्छा लगे, वैसा करो। लेकिन पहले मुझे किसी पेड़ पर चढ़ जाने दो। तुम लोग बहुत होशियार हो। मुझे तुम लोगों के ज्ञान और बुद्धि पूरा भरोसा है। तुम लोग शेर को अवश्य जीवित कर लोगे और जल्द ही यह मरा हुआ शेर जीवित होकर दहाड़ मारने लगेगा। हालाँकि मुझे यह विश्वास नहीं है कि तुम लोग इस शेर का स्वभाव भी बदल पाओगे।
Also Read : Jagannath Ji Ki Aarti Lyrics | श्री जगन्नाथ जी की आरती, सम्पूर्ण जानकारी
शेर कभी घास नहीं खा सकता, जैसे मेमना कभी माँस नहीं खा सकता।” उसके साथी उसकी बात सुनकर हँस पड़े। “तुम डरपोक हो। तुम्हें अपनी जान गँवाने का डर है। शर्म करो! तुम्हें हमारे ज्ञान पर भरोसा है लेकिन तुम्हें यह नहीं पता कि हम लोग जिस जानवर को जीवित करेंगे, वह पूरी तरह हमारे अनुसार ही कार्य करेगा। हम जिस जानवर को जीवनदान देंगे, वह भला हमारे ऊपर क्यों हमला करेगा?
खैर, तुम चाहते हो तो छिप जाओ और हमारा कमाल देखो!” चौथा विद्यार्ती दौड़कर एक पेड़ पर चढ़ गया। उसके सारे मित्र उसे देखकर फिर से हँस पड़े। जब तीसरे विद्यार्थी ने शेर के शरीर में जान डाली तो शेर दहाड़ मारकर उठ बैठा। उठते ही उसने तीनों विद्यार्थियों पर झपट्टा मारा और उन्हें मारकर खा गया। चौथे विद्यार्थी ने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि उसने उसे दुनियादारी की इतनी समझ दी कि उसने ईश्वर और उसके बनाए प्राणियों के काम में दखल नहीं दिया।
Magical Pot Story In Hindi | पंचतंत्र की कहानी में जादुई पतीला के विस्तार हिंदी में
सालों पहले पीतल नगर में राजेंद्र पटेल नाम का एक किसान रहता था। वह गाँव के एक ज़मींदार के खेत पर काम करके किसी तरह अपना घर चला रहा था।
पहले राजेंद्र पटेल के भी खेत थे, लेकिन उसके पिता के बीमार होने के कारण उसे अपने सारे खेत बेचने पड़े। मज़दूरी में मिलने वाले पैसों से पिता का इलाज कराना और घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था।
वो हर दिन सोचता कि कैसे घर की स्थिति को बेहतर किया जाए। आज भी इसी सोच के साथ राजेंद्र पटेल सुबह-सुबह ज़मींदार के खेत पर काम करने के लिए निकला।
खुदाई करते समय उसकी कुदाल किसी धातु से टकराई और तेज़ आवाज़ हुई। राजेंद्र पटेल के मन में हुआ कि आखिर ऐसा क्या है यहाँ? उसने तुरंत उस हिस्से को खोदा तो वहाँ से एक बड़ा-सा पतीला निकला। पतीला देखकर राजेंद्र पटेल दुखी हो गया।
राजेंद्र पटेल के मन में हुआ कि ये ज़ेवरात होते तो मेरे घर की हालत थोड़ी सुधर जाती। फिर राजेंद्र पटेल ने सोचा कि चलो, अब खाना ही खा लेता हूँ। राजेंद्र पटेल ने खाना खाने के लिए अपने हाथ की कुदाल उस पतीले में फेंक दी और हाथ-मुँह धोकर खाना खाने लगा। खाना खत्म करने के बाद राजेंद्र पटेल अपनी कुदाल उठाने के लिए उस पतीले के पास पहुँचा।
वहाँ पहुँचते ही राजेंद्र पटेल हैरान हो गया। उस पतीले के अंदर एक नहीं, बल्कि बहुत सारे कुदाल थे। उसे कुछ समझ नहीं आया। तभी उसने अपने पास रखी एक टोकरी को भी उस पतीले में फेंक दिया। वो एक टोकरी भी पतीले के अंदर जाते ही बहुत सारी हो गईं। ये सब देखकर राजेंद्र पटेल खुश हो गया और उस जादुई पतीले को अपने साथ घर लेकर चला आया।
वो हर दिन उस बर्तन में अपने कुछ औज़ार डालता और जब वो ज़्यादा हो जाते, तब उन्हें बाज़ार जाकर बेच आता। ऐसा करते-करते राजेंद्र पटेल के घर की हालत सुधरने लगी। उसने इस तरह से बहुत पैसा कमाया और अपने पिता का इलाज भी करवा लिया। एक दिन राजेंद्र पटेल ने कुछ गहने खरीदें और उन्हें भी पतीले में डाल दिया। वो गहने भी बहुत सारे बन गए। इस तरह धीरे-धीरे राजेंद्र पटेल अमीर होने लगा और उसने ज़मींदार के यहाँ मज़दूरी करना भी छोड़ दिया।
राजेंद्र पटेल को अमीर होते देख ज़मींदार मोहन को राजेंद्र पटेल पर शक़ हुआ। वो सीधे राजेंद्र पटेल के घर पहुँचा। वहाँ जाकर उसे जादुई पतीले के बारे में पता चला। उसने राजेंद्र पटेल से पूछा, “तुमने यह पतीला कब और किसके घर से चुराया?”
डरी हुई आवाज़ में राजेंद्र पटेल बोला, “साहब! ये पतीला मुझे खेत में खुदाई के समय मिला था। मैंने किसी के घर चोरी नहीं की है।”
खेत में खुदाई की बात सुनते ही ज़मींदार ने कहा, “यह पतीला जब मेरे खेत से मिला, तो यह मेरा हुआ।” राजेंद्र पटेल ने जादुई पतीला ना लेकर जाने की बहुत मिन्नते कीं, लेकिन ज़मींदार मोहन ने उसकी एक नहीं सुनी। वो ज़बरदस्ती अपने साथ वो जादुई पतीला लेकर चला गया।
ज़मींदार ने भी राजेंद्र पटेल की ही तरह उसमें सामान डालकर उन्हें बढ़ाना शुरू किया। एक दिन ज़मींदार ने अपने घर में मौजूद सारे गहने एक-एक करके उस पतीले में डाल दिए और रातोंरात बहुत अमीर हो गया।
एकदम से ज़मींदार के अमीर होने की खबर पीतल नगर के राजा तक पहुँच गई। पता लगाने पर राजा को भी जादुई पतीले की जानकारी मिली। फिर क्या था, राजा ने तुरंत अपने लोगों को भेजकर ज़मींदार के यहाँ से वो पतीला राजमहल मंगवा लिया।
राजमहल में उस जादुई पतीले के पहुँचते ही राजा ने अपने आसपास मौजूद सामान को उसमें डालना शुरू दिया। सामान को बढ़ता देखकर राजा दंग रह गया। होते-होते आखिर में राजा खुद उस पतीले के अंदर चला गया। देखते-ही-देखते उस पतीले से बहुत सारे राजा निकल आए।
पतीले से निकला हर राजा बोलता, “मैं पीतल नगर का असली राजा हूँ, तुम्हें तो इस जादुई पतीले ने बनाया है।” ऐसा होते-होते सारे राजा आपस में लड़ने लगे और लड़कर मर गए। लड़ाई के दौरान वो जादुई पतीला भी टूट गया।
जादुई पतीले के कारण राजमहल में हुई इस भयानक लड़ाई के बारे में नगर में सबको पता चल गया। इस बात की जानकारी मिलते ही मज़दूर राजेंद्र पटेल और ज़मींदार मोहन ने सोचा, अच्छा हुआ कि हमने उस जादुई पतीले का इस्तेमाल सही से किया। उस राजा ने अपनी मूर्खता के कारण अपनी जान ही खो दी।
इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट trickhindi.in के साथ आपका इस बारे में क्या ख्याल है हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो से शेयर जरूर करें.